चुप की बाँह मरोड़े कौन

चुप की बाँह मरोड़े कौन सन्नाटे को तोड़े कौन   माना रेत में जल भी है रेत की देह निचोड़े कौन   सागर सब हो जाएँ मगर साथ नदी के दौड़े कौन   मुझको अपना बतलाकर ग़म से रिश्ता जोड़े कौन   भ्रम हैं, ख़्वाब सलोने पर नींद से नाता तोड़े कौन